
प्लास्टिक से मुक्ति का मार्ग है क्या?
– सुरेश नौटियाल
आज पूरी दुनिया प्लास्टिक के खतरों से परेशान है. संसार भर के पर्यावरण कार्यकर्त्ता, वैज्ञानिक, प्रशासक और आम लोग कोशिश में हैं कि किस प्रकार से इस समस्या से मुक्ति पायी जा सके. इस बीच दुनियाभर में अनेक कंपनियों ने प्लास्टिक कम करने के स्वस्फूर्त प्रयास किये हैं और उनके परिणाम भी सामने आने लगे हैं.
आतंक पैदा करने वाला यह प्लास्टिक है क्या, इस बारे में पहले कुछ पड़ताल करें. देखें कि इसका स्रोत क्या है और यह बनाया कैसे जाता है! दो-तीन वर्ष पूर्व लिखित लॉरा मॉस का एक लेख यहां प्रेरणादायी है.
प्लास्टिक का स्रोत प्राकृतिक और जैविक संसाधन हैं. यह सेल्यूलॉज़, कोयले, प्राकृतिक गैस, नमक और कच्चे तेल से प्राप्त किया जाता है. कच्चा तेल हजारों कंपाउंड्स का जटिल मिश्रण होता है. इसे उपयोग में लाने से पहले प्रोसेस करना पड़ता है. प्लास्टिक निर्माण की प्रक्रिया आयल रिफायनरी में कच्चे तेल के डिस्टिलेशन (शोधन) से आरंभ होती है. यह प्रक्रिया भारी कच्चे तेल को हल्के कंपोनेंट्स ग्रुप में बदलती है. इसे फ्रैक्शन कहा जाता है. हर फ्रैक्शन हाइड्रोकार्बन चेन का मिश्रण होता है और अपने मोलेक्यूल के आधार पर उसका आकार निश्चित होता है. इन फ्रैक्शंस में से एक नाफ्था है जो प्लास्टिक बनाने में मुख्य भूमिका निभाता है. प्लास्टिक बनाने में दो मुख्य प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं — पॉलीमेराइजेशन और पॉलीकंडेन्शेशन। दोनों प्रक्रियायों को विशेष कैटलिस्ट्स चाहिए. पॉलीमेराइजेशन रिएक्टर में इथाइलीन और प्रॉपिललीन जैसे मोनोमर्स को साथ मिलाया जाता है ताकि पॉलीमर की लंबी चेन बन सके. प्रत्येक पॉलीमर की अपनी ख़ास प्रॉपर्टीज, स्ट्रक्चर और आकार होते हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार के बेसिक मोनोमर्स प्रयोग किये गए हैं.
प्लास्टिक कई प्रकार के होते हैं, लेकिन उन्हें दो मुख्य पॉलीमर ग्रुप्स में रखा जा सकता है: पहला है थर्मोप्लास्टिक जो गरमी मिलने से नरम हो जाता है और ठंडा होने पर फिर से कठोर हो जाता है. दूसरा प्लास्टिक ग्रुप है थर्मोसेट्स जो एक बार मोल्ड हो जाने के बाद नरम नहीं होता है. थर्मोप्लास्टिक में आती हैं एबीएस, पीसी, पीई, पेट, पीवीसी, पीएमएमए, पीपी, पीएस और ईपीएस श्रेणियां तथा थर्मोसेट्स प्लास्टिक में आती हैं ईपी, पीएफ, पीयूआर, पीटीएफई और यूपी श्रेणियां.
अब चर्चा करें कि प्लास्टिक के आतंक से धरती को कैसे बचाया जा सकता है. यदि इन उपायों को हम दैनिक जीवन का अंग बनाएं तो बड़ी सीमा तक सुधार देखा सकता है.
आज ऐसी कोई जगह नहीं बची है जहां प्लास्टिक किसी न किसी रूप न हो. हम अपने घर के भीतर ही एक चक्कर लगाएं तो पता चलेगा कि कुर्सियों की गद्दियों से लेकर किचन तक में प्लास्टिक ही प्लास्टिक भरा पड़ा है. फोन, कम्प्यूटर से लेकर कार और सड़क तक सब जगह इसके दर्शन हो जाएंगे. यहां तक कि जिस च्यूइंग-गम को हम चबाते हैं उसमें भी अब एक प्रकार का प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है. और अब तो चिंता यह जताई जा रही है कि नमक के माध्यम से प्लास्टिक हमारे भोजन-चक्र में भी घुसपैठ कर चुका है.
कहा तो यह जाता है कि प्लास्टिक को रीसाईकल किया जा सकता पर सच्चाई यह है कि वह केवल डाउनसाईकल हो पाता है. अर्थात उसकी गुणवत्ता घट जाती है. अमेरिका जैसे देश में साढ़े तीन करोड़ टन के करीब प्लास्टिक कचरा हर साल जमा होता है और इसका केवल सात प्रतिशत ही रीसाईकल हो पाता है. भारत की स्थिति और भी दयनीय है.
और जो अधिकांश कचरा रीसाईकल होने से बच रहता है, वह लैंडफिल्स, नदियों और समुद्रों के हवाले हो जाता है. नदियों और समुद्रों में प्लास्टिक जो तबाही मचाता है, उस पर अलग से लेख लिखा जाएगा. अभी तो केवल यह बात रखी जा रही है कि प्लास्टिक के आतंक को कम कैसे किया जाए. इस लेख में आरंभ में ही कह दिया गया था कि यदि हम छोटे-छोटे उपाय करें तो इस समस्या से बड़ी सीमा तक निजात पायी सकती है.
दुनिया में प्रत्येक मिनट में कम से कम दस लाख प्लास्टिक की थैलियां इस्तेमाल की जाती हैं. अर्थात 24 घंटे के एक दिन में 1 अरब 44 करोड़ प्लास्टिक थैलियां इस्तेमाल में आती हैं. यह आंकड़ा अपने-आप में चौंका देने वाला है. और यह और भी चौंकाने वाली बात है कि हर ऐसी थैली नष्ट होने में एक हजार साल तक का समय लग सकता है.
संयुक्तराष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार विश्व बार में हर साल 500 बिलियन प्लास्टिक बैग इस्तेमाल होते हैं और इसमें से 50 प्रतिशत बैग केवल एक बार उपयोग में लाये जाते हैं. इस प्रकार, हर वर्ष कम से कम 80 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्रों के गर्भ में पहुंच जाता है.
पर, इन करोड़ों-अरबों प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल हम आसानी से बंद कर सकते हैं. जब भी सामान खरीदने जाएं, अपने साथ कपड़े का थैला साथ लेकर जाएं. ऐसा थैला नहीं हो तो खरीद लें. ध्यान रखें कि नायलॉन या पॉलिएस्टर का थैला न खरीदें क्योंकि ये दोनों भी प्लास्टिक से ही बनते हैं. संक्षेप में सबसे अच्छा विकल्प कपड़े का थैला है. आपको याद होगा कि पहले आप जब पंसारी की दूकान पर सामान खरीदने जाते थे तो अपने साथ थैले लेकर जाते थे. बहुत सारे थैलों में आप अपना सामान – आटा, दाल, चावल, मसाले इत्यादि लेकर आते थे. प्लास्टिक आने के बाद यह नाममात्र के लिए रह गया.
आपने देखा होगा कि अक्सर सामान को आकर्षक बनाने के लिए अनावश्यक पैकेजिंग की जाती है. स्टोर्स और दुकानदार चाहें तो इसमें खूब कमी की जा सकती है. अभी हाल में ऑस्ट्रेलिया की एक स्टोर चेन ने सिंगल यूज प्लास्टिक में बड़ी कमी की और इससे पूरे देश में प्लस्टिक की खपत काफी कम हो गयी है. संक्षेप में, प्लास्टिक से बचने में कपड़े के थैलों से बेहतर विकल्प कोई नहीं है.
ग्लास जार्स यानी कांच के मर्तबानों अथवा चीनी मिट्टी के बर्तनों में भी सामान खरीदा और रखा जा सकता है. खाने का कुछ सामान तो कांच के मर्तबानों में ही अच्छा रहता है — मसलन अचार, घी, दही, मक्खन इत्यादि. यदि आपके घर में प्लास्टिक के ऐसे बर्तन हों जिनमें दही, मक्खन इत्यादि हो तो उन्हें धोकर फिर से ऐसा ही सामान रखने के काम में लाया जा सकता है.
प्लास्टिक के बर्तन भी उपयोग में न लायें. प्लास्टिक के चाकू, चॉपस्टिक और चम्मच से लेकर फोर्क और स्पोर्क्स सब न खरीदें. स्टील के बर्तनों का सेट अपने ऑफिस में भी रखें और रेस्तरां को याद से बता दें कि प्लास्टिक पैक में कोई चीज न भेजें. अपने लंचबॉक्स में भी परिवर्तन करें. प्लास्टिक का सामान उसमें न रखें. अपना लंच प्लास्टिक में कतई न रखें.
फ्रोजेन फ़ूड सुविधाजनक तो होता है पर अपने साथ प्लास्टिक का ढेर सारा कचरा लेकर आता है. जो सामान एको-फ्रेंडली कार्डबोर्ड में पैक होता है उसमें भी कई बार प्लास्टिक की कोटिंग होती है. यदि आप फ्रोजेन फ़ूड का त्याग कर दें तो यह सुनिश्चत है कि आपके शरीर में कम केमिकल्स पहुंचेंगे. भोजन जितना ताजा होगा, उतना पुष्टिवर्द्धक होगा.
पानी की बोतलों से अत्यधिक प्लास्टिक कचरा जमा होता है. ऐसी बोतलों से हर साल 15 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा जमा होता है. और यदि फ़ूड एंड वाटर वाच संस्था की बात मानें तो इतनी बोतलें बनाने के लिए 4.7 करोड़ गैलन प्राकृतिक तेल चाहिए. यदि आप इनमें से कुछ बोतलों को फिर से इस्तेमाल के लिए रखते हैं तो आप इन्हें नदी और समुद्र में जाने से रोकते हैं. आप अपना कप अपने साथ रखें तो वेटर से कह सकते हैं की वह उसमें चाय-काफी दे. किसी रेस्तरां से यदि आप खाना या कोई अन्य सामान पैक करकार ले जाना चाहते हैं तो अपना स्टील का बॉक्स रेस्तरां को दें और उसमें खाना पैक करने को कहें.
मैं आठ-दस साल पहले एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक में हिस्सा लेने ताइवान गया था. उद्घाटन के समय ही हमें बांस के कप दे दिए गए और निर्देश दिया गया कि इसी कप को पानी, चाय-काफी और सूप इत्यादि पीने में इस्तेमाल करना है और जब वापस जाएं तब इस कप को स्मृति-चिन्ह के रूप में अपने साथ ले जाएं. यह कप आज भी मेरे पास है और एक पारिस्थितिक समझ की याद दिलाता रहता है.
जब हम इस प्रकार की गई-जिम्मेदाराना हरकतें करते हैं तब हम पूरी धरती पर अत्याचार कर रहे होते हैं. एक अमेरिकी कर्मचारी प्रति वर्ष औसतन 500 डिस्पोजेबल कपों को इस्तेमाल कर कचरा बढ़ाता है. भारत सहित दूसरे देश भी पीछे नहीं हैं.
यदि आप चाहते हैं कि प्लास्टिक स्ट्रॉ नदी या समुद्र में वास करने वाले किसी प्राणी की आंख-नाक में न घुसे तो एक ही विकल्प है कि आप स्ट्रॉ का उपयोग कदापि बंद कर दें. रेस्त्रां या होटल जाएं तो वेटर को बता दें कि आपका पेय बिना स्ट्रॉ के लाये. खाने का कुछ सामान पैक कराएं तो भी यह ऐहतियात बरतें. यदि किसी कारण से स्ट्रॉ का उपयोग आपके लिए आवश्यक हो तो आप स्टेनलेस स्टील या कांच का स्ट्रॉ खरीदकर अपने पास रखें.
च्युइंग गम एक गई-जरूरी चीज है. इसे त्यागना ही अच्छा है. पहले च्युइंग गम पेड़ के गोंद से बनाता था, लेकिन सिंथेटिक रबर — पॉलीथाईलीन और पॉलीविनाइल एसिटेट — आने से च्युइंग गम में प्राकृतिक रबर का स्थान सिंथेटिक रबर ने ले लिया. इस प्रकार च्युइंग गम चबाने वाले प्लास्टिक चबा रहे होते हैं होते हैं और कई बार तो यह टॉक्सिक अर्थात जहरीला होता है. पॉलीविनाइल एसिटेट तो विनाइल एसिटेट से बनता है जो प्रयोगशाला के चूहों में ट्यूमर पैदा करता है. कुल मिलाकर, च्युइंग गम एक गैर-जरूरी चीज है और इसे त्यागने में ही भलाई है. नदी, नाले या समुद्र में यह बड़ी आसानी से मछली या किसी अन्य जीव के पेट में पहुंच कर वहा चिपक जाता है और जानलेवा तक साबित होता है.
प्लास्टिक के कप में जूस पीने की भी क्या आवश्यकता है? आप घर में ताजे फलों का जूस स्वयं निकाल सकते हैं या सीधे-सीधे ताजे फल खा सकते हैं. यदि ऐसा करे तो प्लास्टिक कचरे में कमी अवहस्य आयेगी. ताजे फलों से आपको अधिक विटामिन और एंटीऑक्सिदेंट्स भी मिलेंगे.
प्लास्टिक लाइटर के स्थान पर माचिस का इस्तेमाल करें. प्लास्टिक लाइटर जैसे सामान अनुपयोगी होने के बाद नदी या समुद्र या लैंडफिल्स में जमा हो जाते हैं. यदि लाइटर ही इस्तेमाल करना हो तो धातु का ऐसा लाइटर रकेह जिसमें ईंधन फिर से भरा जा सकता हो. ऐसा सामान पशु-पक्षियों के पेट तक में पहुंच जाता है.
लांड्री के लिए आप जो भी डिटर्जेंट खरीदें, वे कागज़ के बॉक्स यानी कार्डबोर्ड में हों, प्लास्टिक बोतल में नहीं. कार्डबोर्ड को रीसाईकल करना आसान भी होता और उनका फिर से उपयोग हो सकता है, प्लास्टिक का नहीं.
और हां, यदि आपके घर में बेकिंग सोडा और विनेगर हैं तो आपको टाइल, विंडो और टॉयलेट क्लीनर की अलग-अलग प्लास्टिक बोतलें रखने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी. आपके टॉयलेट में कुछ जगह बचने के साथ-साथ आपकी जेब से धन भी कम निकलेगा. बाजार में बिकने वाले ये सब उत्पाद टॉक्सिक अलग से होते हैं.
अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के अनुसार इस देश में हर साल 76 करोड़ पाउंड्स डिस्पोजेबल डायपर्स इस्तेमाल होते हैं और फेंके जाते हैं. केवल अमेरिकी बच्चों के लिए हर साल 80 हजार पाउंड्स प्लास्टिक और दो लाख पेड़ डिस्पोजेबल डायपर बनाने में चुक जाते हैं. कपड़े के डायपर इस्तेमाल करने से आप बच्चों के कार्बन फूटप्रिंट्स में कटौती करने के साथ-साथ पैसा भी बचा सकते हैं.
कुल मिलाकर यदि हम सब प्रयास करें तो धरती को बचाने की कवायद में हमारी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है.
1 Comment
Thanks. It is a real matter of concern.
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